Tuesday, July 21, 2009

Chinmayan Roop composed by Jogeshwar Bhisma

This is the 6th Sai Baba Arati sung as the part of morning called Chinmayan Roop composed by
Jogeshwar Bhismaa

यहाँ साई बाबा की छठी आरती है चिम्न्माया रूप जोगेश्वर भिस्म्हा रचित

चिन्मय रूप (काकड़ रूप)
श्री कु. जा. भीष्म रचित

काकड आरती करितो साईनाथ देवा
चिन्मयरूप दाखवी घेउनी बालक-लघुसेवा

है साईनाथ देव, मैं (प्रातः बेला) काकाड़ आरती करता हूँ। मुज बालक की अल्प-सेवा को स्वीकार करिये और अपने चिन्मय रूप का दर्शन दीजिये।

काम क्रोध मद मत्सर आटुनी काकडा केला
वैराग्याचे तूप घालुनी मी तो भिजविला।।

मैंने काम, क्रोध, लोभ और इर्ष्या को मरोड़कर (काकड़) बतियाँ बनायी है और वैराग्या रुपी घी में उन्हें भिगोया है।


साइनाथ गुरुभक्तिज्वलने तो मी पेटविला
तदवृत्ति जालुनी गुरुने प्रकाश पाडिला
द्वैत-तमा नासूनी मिळवी तत्स्वरूपी जीवा

चि. का... ॥

इनको मैंने श्री साइनाथ के प्रति गुरुभक्ति की अग्नि से प्रज्वलित किया है। मेरी दुष्प्रवृतियों को जलाकर हे गुरु, आपने मुझे आत्म प्रकाशित किया है। हे साई, आप द्वैतवृति के अन्धकार को नष्ट कर मेरे जीव को अपने स्वरुप में विलीन कर लीजिये। अपना चिन्मय रूप...

भू-खेचर व्यापूनी अवधे ह्र्त्कमली राहसी
तोचि दत्तदेव तू शिर्डी राहुनी पावसी

समस्त पृथ्वी-आकाश में व्याप्त आप सभी प्राणियो के ह्रदय में वास करते हैं। आप ही दत गुरुदेव हैं, जो शिर्डी में वास करके हमें धन्य करते हैं।

राहुनी येथे अन्यत्रही तू भक्तांस्तव धावसी
निरसुनिया संकटा दासा अनुभव दाविसी
कळे त्वल्लीलाही कोण्या देवा वा मनवा
चि.का... ॥

यहाँ (शिर्डी में) होते हुए आप अपने भक्तों के लिए कही भी दौड़ते हैं। भक्तों के संकटों का निवारण करके अपनी अनुभूति देते हैं तो देवता और नही मनुष्य, आप की इस लीला को समज सके हैं।

त्वधय्शदुंदुभीने सारे अंबर हे कोंदले
सगुण मूर्ति पाहण्या आतुर जन शिर्डी आले।।

आपके यश की दुंदूभी से सारा आकाश और समस्त दिशाएँ गुंजायमान हैं आप के दिव्य सगुण रूप के दर्शन के लिए आतुर लोग शिर्डी आये हैं।

प्राशुनी त्वद्व्चनामृत अमुचे देहभान हरपले
सोडुनिया दुरभिमान मानस त्वच्चरणी वाहिले
कृपा करुनिया साईमाऊले दास पदरी ध्यावा

चि.का... ॥

वे आपके वचनामृत पाकर अपनी सुध-बुध खो चुके हैं और अपना अभिमान और अंहकार छोड़ कर आपके चरणों के प्रति समर्पित हैं। है साई माँ, कृपा करके अपने इस दास को अपने आँचल की छाँव मैं ले लीजिये।

3 comments:

  1. क्तीचिया पोटीं बोध कांकडा ज्योती ।
    पंचप्राण जीवें भावें ओवाळूं आरती ।। 1 ।।
    it is from shiridi aarathi. can you please give me its word by word meaning??

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